Amritsar(Rajeev Sharma):
द कश्मीर फाईल्स’ फिल्म कश्मीर में हिन्दुओं पर हुए दिल दहलाने वाले भयानक अत्यचारों तथा तत्कालीन सियासत, अलगाववादियों व आंतकवादियों द्वारा दशकों तक उनकी आवाज़ दबाए जाने की सच्ची कहानीयां है। यह बातें भारतीय जनता पार्टी अमृतसर के अध्यक्ष सुरेश महाजन ने अमृतसर के भाजपा नेताओं व कार्यकर्ताओं के साथ ‘द कश्मीर फाईल्स’ फिल्म देखने के बाद मीडिया से बात करते हुए कही। महाजन ने कहा कि कश्मीर के व्याकुल करने वाले सच से लोग पूरी तरह परिचित नहीं हैं। कैसे कट्टरपंथियों व आतंकियों ने कश्मीरी-हिंदुओं को उनकी जमीन से बेदखल किया गया! बेरहमी से बजुर्गों, नौजवानों व बच्चों के खौफनाक तरीके से कत्ल किए गए। महिलाओं पर शर्मनाक अत्याचार किए। कश्मीरी हिन्दू कैसे तत्कालीन सरकारों, स्थानीय प्रशासन, पुलिस और मीडिया जैसी ताकतों के बावजूद अपनी धरती से पलायन के बाद देश के विभिन्न राज्यों में शरणार्थी बने। और आज तक उन्हें न्याय नहीं मिल सका। पुरानी पीढ़ियों से होता हुआ यह भयानक दर्द आज नई पीढ़ी की रगों में दौड़ रहा है। यही सब इस फिल्म में प्रस्तुत किया गया है।
सुरेश महाजन ने कहा कि यह कहानी रिटायर्ड टीचर पुष्कर नाथ पंडित (अनुपम खेर) और उनके परिवार पर केन्द्रित है। उनके बहाने कश्मीरियों के जख्मों और तकलीफों को दिखाया गया है। जेएनयू, दिल्ली में पढ़ने वाला उनका जवान पोता कृष्णा (दर्शन कुमार) जब कश्मीर पहुंचता है, तो पुष्कर नाथ के पुराने दोस्तों आईएएस ब्रह्मदत्त (मिथुन चक्रवर्ती), डीजीपी हरि नारायण (पुनीत इस्सर), डॉ. महेश कुमार (प्रकाश बेलावाडी) और पत्रकार विष्णु राम (अतुल श्रीवास्तव) से मिलता है। वहां उसका सामना हकीकत से होता है। वह उस आतंकी फारूक मलिक बिट्टा (चिन्मय मांडलेकर) से भी रू-ब-रू होता है, जो उनके परिवार समेत कश्मीर की बर्बादी का जिम्मेदार है। विश्व विद्यालय में कश्मीर को देश से अलग करने के नारे लगाने वाले कृष्णा को वहां सच्चाई पता लगती है और उसकी आंखों के आगे से पर्दे हटते हैं। फिल्म में कश्मीर से जुड़े दुष्प्रचारों को सामने लाने की कोशिश की गई है। फिल्म में दिखाई हिंसा कहीं-कहीं हिला देती है। इस फिल्म में कश्मीर को भारत से तोड़ने वाली षड्यंत्रकारी सोच पर फोकस करते हैं। फिल्म में आतंकी पुलिस की वर्दी में 24 कश्मीरी-हिंदुओं को एक कतार में खड़ा करके गोलियों से भून देते हैं। छोटे बच्चे को भी नहीं बख्शते। वे कश्मीरी-हिंदुओं और भारत का अपमान करने वाले नारे लगाते हैं। फिल्म में महिलाओं को किस-किस तरह से अपमानित किया गया तथा उनके साथ कैसी हिंसा हुई यह सब दिखाया गया है।
सुरेश महाजन ने कहा कि करीब तीन घंटे की इस फिल्म का पहला हिस्सा जहां कश्मीर में 1990 में हुए भीषण नरसंहार पर केंद्रित है, वहीं दूसरे हिस्से में नई पीढ़ी के असमंजस को दिखाया गया है। जिसमें बताया कुछ गया है और सच कुछ और है। फिल्म में कश्मीर की आजादी के नाम पर आतंकियों और अलगाववादियों के इरादे जाहिर करते हुए नई पीढ़ी की उलझन को सामने लाया गया है। काली बिंदी लगाई हुई वामपंथी-उदारवादी प्रो. राधिका मेनन के रूप में पल्लवी जोशी यहां युवाओं को गुमराह करने वालों का प्रतिनिधित्व करती है। यह फिल्म में बहुत सारे पीड़ितों की सच्ची कहानियों और दस्तावेजों पर आधारित है। आर्टिकल 370 से लेकर शरणार्थी कैंपों में कश्मीरियों की दुर्दशा और उस पर राजनेताओं की संवेदनहीनता को भी यहां उभारा गया है। कश्मीर फाइल्स ऐसी कई सारी बातें सामने लाती हैं, जिस सच्चाई से लोगों को अवश्य रु-ब-रु होना चाहिए।
सुरेश महाजन ने कहा कि फिल्म कश्मीरी-हिंदुओं पर हुए अत्याचारों को लगातार उभारते हुए, कई सवाल उठाती है कि इसका हिसाब कौन देगा और उन्हें न्याय कब मिलेगा? कश्मीर भारत का सच है और इस सच के बहुत सारे सच हैं। बीते कई बरसों से सब अपने-अपने अंदाज में कश्मीर का सच कहते रहे हैं। कश्मीर फाइल्स भी एक सच दिखाती है और उसे भी देखा जाना चाहिए। महाजन ने सभी को यह फिल्म देखने का आह्वान किया। इस अवसर पर राज्यसभा सांसद श्वेत मलिक, प्रदेश सचिव राजेश हनी, जिला उपाध्यक्ष मानव तनेजा, डॉ. राकेश शर्मा, कुमार अमित, डॉ. हरविंदर सिंह संधू, सचिव मनीष शर्मा, रघु शर्मा, एकता वोहरा, मनोहर सिंह, सपना भट्टी, सतपाल डोगरा, केवल गिल, राकेश महाजन, शिव कुमार शर्मा, मनीष महाजन, अनमोल पाठक, तरुण अरोड़ा, शशि शर्मा आदि उपस्थित थे।